अजब तेरी कारीगरी करतार,
महिमा तेरी अगम अपार || टेक ||
पावक पवन नीर औ' वारिधि धरती आकाश बनाने,
चाँद-सूर्य तारांगण सोहै सोहै दिव्य ज्योति अपार,
अजब तेरी कारीगरी करतार ||१||
लख-चौरासी जीव बनाये जंगल और पहाड़,
अंड-पिंड उखमज-अस्थावर चार खागी निर्माण,
अजब तेरी कारीगरी करतार ||२||
सर्व जीव में उत्तम मानव भरा ज्ञान भंडार,
अहंकार अभिमान के कारण चेतत नहीं गंवार,
अजब तेरी कारीगरी करतार ||३||
चेतन जीव अमित रस चोखे जड़ रहे जन्म बिगाड़,
कल्लूराम दास कहै हे प्रभुजी विनती सुनो हमार,
अजब तेरी कारीगरी करतार ||४||
|| इति समाप्त ||
-: दास कल्लूराम :-
रविवार, 25 जुलाई 2010
शनिवार, 24 जुलाई 2010
काल करे सो आज कर
पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय ।
एक पहर हरि नाम बिन, मुक्ति कैसे होय ॥
कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान ।
जम जब घर ले जायेंगे, पड़ी रहेगी म्यान ॥
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीना जन्म अनमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥
लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट ॥
आय हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर ।
एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बँधे जात जंजीर ॥
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥
एक पहर हरि नाम बिन, मुक्ति कैसे होय ॥
कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान ।
जम जब घर ले जायेंगे, पड़ी रहेगी म्यान ॥
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीना जन्म अनमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥
लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट ॥
आय हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर ।
एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बँधे जात जंजीर ॥
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥
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