कबीर नवै सब आपको, पर को नवै न कोय ।
घालि तराजू तौलिये, नवै सो भारी होय ॥
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय ।
यह आपा तो ड़ाल दे, दया करे सब कोय ॥
दर्शन करना है तो, दर्पण माँजत रहिये ।
दर्पण में लगी कई, तो दर्श कहाँ से पाई ॥
बोली एक अमोल है, जो कोइ बोलै जानि ।
हिये तराजू तौल के, तब मुख बाहर आनि ॥
मूरख संग ना कीजिए, लोहा जल ना तिराइ ।
कदली, सीप, भुजंग-मुख, एक बूंद तिहँ भाइ ॥
बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥
चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह ।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥
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आपके यहाँ आकर अच्छा लगा।
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