कबीर सुता क्या करे, करे काज निवार|
जिस पंथ तू चलना, तो पंथ संवार||
जैसे तिल में तेल है, ज्यों चकमक में आग|
तेरा साईं तुझ में है, तू जाग सके तो जाग||
जीवत समझे जीवत बुझे, जीवत ही करो आस|
जीवत करम की फाँस न काटी, मुए मुक्ति की आस||
अकथ कहानी प्रेम की, कुछ कही न जाये|
गूंगे केरी सर्करा, बैठे मुस्काए||
मुंड मुंडावत दिन गए, अजहूँ न मिलिया राम|
राम नाम कहू क्या करे, जे मन के औरे काम||
पहले अगन बिरहा की, पाछे प्रेम की प्यास|
कहे कबीर तब जानिए, नाम मिलन की आस|
एक कहूँ तो है नहीं, दो कहूँ तो गारी|
है जैसा तैसा रहे, कहे कबीर बिचारी|
शनिवार, 17 अप्रैल 2010
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DHANYA WAD AAP KA PADANE KE LIYE
जवाब देंहटाएंBAHUT KHUB
SHEKHAR KUMAWAT
http://kavyawani.blogspot.com/
v nice
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