मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में

जो सुख पाऊँ राम भजन में ,
सो सुख नाहिं अमीरी में,
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

भला बुरा सब का सुनलीजै,
कर गुजरान गरीबी में,
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

आखिर यह तन छार मिलेगा,
कहाँ फिरत मग़रूरी में,
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

प्रेम नगर में रहनी हमारी,
साहिब मिले सबूरी में,
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

कहत कबीर सुनो भयी साधो,
साहिब मिले सबूरी में,
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

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